bhumi bihar: ऑनलाइन सेवाओं के बावजूद अंचल कार्यालयों में भीड़ क्यों?
बिहार सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में “डिजिटल इंडिया” के सपने को साकार करने के लिए राजस्व और bhumi bihar: ऑनलाइन सेवाओं के बावजूद अंचल कार्यालयों में भीड़ क्यों?संबंधी सेवाओं को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लाने का बड़ा कदम उठाया है। “भूमि बिहार” पोर्टल के माध्यम से आम नागरिकों को जमीन से जुड़े दस्तावेजों, रिकॉर्ड की जानकारी, और दाखिल-खारिज जैसी प्रक्रियाओं को घर बैठे निपटाने की सुविधा दी गई। लेकिन हाल ही में अंचल कार्यालयों में बढ़ती भीड़ और लोगों की परेशानियों ने एक नई बहस छेड़ दी है: “क्या वाकई ऑनलाइन व्यवस्था जमीनी समस्याओं का समाधान कर पा रही है?”
इस ब्लॉग में, हम बिहार के राजस्व विभाग की ऑनलाइन सेवाओं के बीच अंचल कार्यालयों में जमा हो रही भीड़ के कारणों, नागरिकों की चुनौतियों, और संभावित समाधानों पर चर्चा करेंगे।
भूमि बिहार पोर्टल: सुविधा या नई मुश्किल?

“भूमि बिहार” पोर्टल को लॉन्च करते समय सरकार का उद्देश्य था कि लोगों को जमीन संबंधी कामकाज के लिए दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें। लेकिन आज भी पटना समेत कई जिलों के अंचल कार्यालयों में राजस्व कर्मचारियों के पास लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। यह स्थिति क्यों बनी?
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दाखिल-खारिज केसों में ऑनलाइन त्रुटियाँ:
अधिकतर लोग उन केसों को लेकर कार्यालय पहुँच रहे हैं जिन्हें ऑनलाइन आवेदन के बाद बिना स्पष्ट कारण बताए रिजेक्ट कर दिया गया। उदाहरण के लिए, रामविलास सिंह (मुजफ्फरपुर) ने बताया कि उनका आवेदन केवल एक छोटी सी गलती (जैसे हस्ताक्षर का अभाव) के कारण रद्द हो गया, लेकिन उन्हें इसकी सूचना नहीं मिली। ऐसे में उन्हें अपील करने या नया आवेदन डालने में हफ्तों लग जाते हैं। -
ऑनलाइन दस्तावेजों में गड़बड़ी:
कई नागरिकों का कहना है कि उनकी जमीन के रिकॉर्ड ऑनलाइन पोर्टल पर गलत दिखाए जा रहे हैं। कुछ मामलों में पुराने दस्तावेजों का डिजिटाइजेशन ही नहीं हुआ है, जिससे ऑनलाइन जानकारी अधूरी है। ऐसे लोगों को अंचल कार्यालय जाकर मूल जमाबंदी की फिजिकल कॉपी देखनी पड़ती है। -
सर्वेक्षण और दस्तावेजों की जरूरत:
जमीन के सर्वेक्षण या बैंक लोन जैसे कामों के लिए फिजिकल दस्तावेजों की आवश्यकता होती है। ऐसे में लोग अंचल कार्यालय से नकल निकालने या अधिकारियों से सत्यापन कराने के लिए मजबूर हैं।
“हमें सिर्फ सही मार्गदर्शन चाहिए!” – नागरिकों की आवाज
अंचल कार्यालयों में आने वाले लोगों से बातचीत के दौरान एक बात सामने आई: “ऑनलाइन प्रक्रिया को यूजर-फ्रेंडली बनाने की जरूरत है।”
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त्रुटियों की सूचना का अभाव:
राजेश्वरी देवी (भागलपुर) ने बताया कि अगर उनके आवेदन को रिजेक्ट करने से पहले ही उन्हें गलती के बारे में SMS या ईमेल से सूचित किया जाता, तो वे समय रहते सुधार कर लेतीं। इससे उनका केस दोबारा लटकता नहीं और समय बचता। -
डिजिटल लिटरेसी की कमी:
ग्रामीण इलाकों के बुजुर्ग या कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग करना चुनौतीपूर्ण है। उन्हें फॉर्म भरने या अपलोड करने में तकनीकी दिक्कतें आती हैं, जिसके चलते वे कार्यालय का रुख करते हैं। -
अपडेट न होने वाले रिकॉर्ड:
कुछ मामलों में, जमीन के मालिकाना हक में बदलाव होने के बावजूद ऑनलाइन रिकॉर्ड अपडेट नहीं होते। इससे विवाद पैदा होते हैं, और लोगों को अधिकारियों से सीधे मिलकर समस्या सुलझानी पड़ती है।
सरकार की प्रतिक्रिया: संवेदनशीलता और सुधार की जरूरत
राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री श्री संजय सरावगी ने हाल ही में एक बैठक में इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अंचल कार्यालयों में आने वाले नागरिकों की समस्याओं का त्वरित निपटारा होना चाहिए। साथ ही, उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे लोगों के प्रति संवेदनशील बनें और लापरवाही बर्दाश्त न की जाए।
सरकार की ओर से उठाए जा सकने वाले कदम:
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ऑनलाइन अपडेट्स की रियल-टाइम मॉनिटरिंग:
तकनीकी टीम्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर आवेदन की स्थिति (जैसे रिजेक्शन का कारण) उपयोगकर्ता तक पहुँचे। -
हेल्पडेस्क और ट्रेनिंग सेशन:
गाँव-गाँव में डिजिटल लिटरेसी कैंप लगाकर लोगों को पोर्टल के उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाए। -
पुराने रिकॉर्ड्स का शीघ्र डिजिटाइजेशन:
जिन दस्तावेजों का अभी तक स्कैनिंग नहीं हुआ है, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर डिजिटल किया जाए। -
फीडबैक मैकेनिज्म:
नागरिकों से ऑनलाइन फीडबैक लेकर व्यवस्था में सुधार किया जाए।
नागरिक क्या कर सकते हैं?
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ऑनलाइन पोर्टल की जाँच करें:
“भूमि बिहार” पर अपने दस्तावेजों की स्थिति चेक करते रहें। अगर कोई त्रुटि दिखे, तो तुरंत संबंधित अधिकारी से संपर्क करें। -
आवेदन भरने से पहले गाइडलाइन्स पढ़ें:
फॉर्म में हर कोलम को ध्यान से भरें और आवश्यक दस्तावेज अटैच करें। -
सामुदायिक सहयोग:
गाँव के युवा या शिक्षित लोग बुजुर्गों की ऑनलाइन प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं।
निष्कर्ष: सुधार की राह पर बिहार
“भूमि बिहार” पोर्टल एक सराहनीय पहल है, लेकिन इसकी सफलता के लिए सरकार और नागरिकों के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है। अगर तकनीकी खामियों को दूर कर दिया जाए और लोगों को सही मार्गदर्शन मिले, तो अंचल कार्यालयों में भीड़ कम हो सकती है। साथ ही, राजस्व विभाग के कर्मचारियों को यह समझना होगा कि उनकी थोड़ी सी संवेदनशीलता किसी के तनाव को कम कर सकती है।
आखिरकार, “डिजिटल बिहार” का सपना तभी साकार होगा जब हर नागरिक तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।